वास्तु भारत का प्राचीन निर्माण ग्रंथ है। इसके अंदर भवन, इमारत इत्यादि बनाने के नियम और दिशाएँ निहित किए गए हैं। वास्तु के अंदर आकाश और पाताल को मिला कर कुल दस दिशाएँ होती हैं। चार प्रमुख दिशाएँ – उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम, चार विदिशाएँ – ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य होती हैं। दिशा के मध्य भाग को विदिशा कहते हैं। इन सभी दिशाओं का वास्तु के अंदर अपना-अपना अलग महत्त्व है।
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रसोई वास्तु – Cuisine Vaastu or Kitchen Vastu
1. वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की रसोई (Kitchen) भूखंड के अग्नि कोण में होनी चाईए, पुनः रसोई के अग्नि कोण में चूल्हा होना चाईए. रसोई के बाहर से देखने पर चूल्हे की अग्नि नहीं दिखाई देनी चाईए।
2. वास्तु शास्त्र के अनुसार सिंक या चूल्हे के ऊपर पूजा घर नहीं रखना चाईए।
3. रसोई को किसी भी सूरत में ईशान कोण (Ishan Kon) में नहीं होना चाईए, नैश्रृत्य कोण में रसोई की स्थति अच्छी नहीं मानी गई है. रसोई के ईशान कोण में पीने के पानी का प्रबंध होना चाईए।
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4. इलेक्ट्रोनिक वस्तए अग्नि कोण या दक्षिण दीवार की तरफ रखनी चाईए, इलेक्ट्रोनिक सामान के पास जल नहीं रखना चाईए. रसोई में अन्नपूर्णा माता की तस्वीर लगानी चाईए।
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