पर्यंकासन कया है? | What is Paryankasana ?
इस आसन में एड़ियां नितम्बों के नीचे लगाकर लेटा जाता है, अतः इसे पर्यकासन कहते हैं।
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पर्यंकासन के लाभ | Paryankasana Benefits
यह आसन पेट, प्रजनन अंग तथा मूत्राशय पर गहरा दबाव डालता है। इससे स्नायुविक तथा रक्त संचरण सम्बन्धित क्रियाओं में तेजी आती है तथा कामेद्रियां भी प्रभावित होती हैं
कष्टरहित प्रसव के लिए भी यह आसन उपयोगी है, परन्तु गर्भस्थिति के चौथे मास के बाद यह आसन नहीं करना चाहिए।
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पर्यंकासन की विधि | Paryankasana Steps
इस आसन को करने के लिये पांवों को जांघों के नीचे दबाकर पिण्डलियों पर बैठ जाएं। फिर पीछे की ओर थोड़ा-सा झुकें तथा कोहनियों का सहारा लेकर चित लेट जाएं। एड़ियों को नितम्ब के जोड़ पर रखे व दबाव बनाए रहें। दोनों घुटने परस्पर मिले रहें।
ऊपर आकाश की ओर दृष्टि रखते हुए गर्दन व शरीर को एकदम सीधा रखें। फिर दोनों हाथों की अंगुलियों को फैलाकर उन्हें वक्षस्थल पर रख लें।
प्रारम्भ में कुछ दिनों तक इस अभ्यास को सायंकाल में करें। बाद में प्रातः काल करना चाहिए। पहले घुटनों के खिंचाव का ही अभ्यास करना चाहिए। जब उसमें सफलता मिल जाए तब पूरा आसन करें।
इस आसन में श्वास लेने तथा छोड़ने की भी गति धीमी रखनी चाहिए। आरम्भ में यह अभ्यास कठिन रहता है परन्तु निरन्तर प्रयत्न करते रहने पर साध्य हो जाता है। आरम्भ में इसे कुछ सेकेण्ड तक ही करें, बाद में अभ्यास बढ़ाकर तीस मिनट तक कर सकते हैं।
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विशेष
स्त्री-पुरुष तथा हर आयु-वर्ग के अभ्यासी इसे कर सकते हैं। गर्भवती स्त्रियां. गर्भ धारण करने के तीन माह तक ही करें।
पर्यंकासन करने का समय | Time of Paryankasana
इसे आरम्भ में एक मिनट, फिर बढ़ाकर तीन मिनटे तक कर सकते हैं। आरम्भ में शाम को, अभ्यास हो जाने पर प्रातःकाल खाली पेट करें।
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