नाभि चिकित्सा: नाभि द्वारा सभी प्रकार की बीमारियों का उपचार बहुत पहले से होता आया है, और यह उपचार विधि अत्यन्त सरल है। विश्व के हर काेने में, कही न कही, किसी न किसी नाम या किसी न किसी चिकित्सा पद्धति में इस उपचार का उल्लेख हमे देखने काे मिल ही जाता है। लेकिन क्या है इसका एक साथ संगृह नही है, इसका अलग-अलग चिकित्सा पद्धतियाें में अलग-अलग नामाें से इसका उल्लेख किया गया हैं। यहा पर नाभि चिकित्सा (नाभि चिकित्सा pdf) से विभिन्न प्रकार की बीमारियों के उपचार की चर्चा की जा रही है।
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नाभि चिकित्सा: नाभी कुदरत की एक अद्भुत देन है
कई बार क्या होता है की एक आँख से कम दिखने लगता है । खासकर रात को नजर न के बराबर हो जाती है। ऐसे रोग में जाँच करने पर यही पता लगता है की आँखे तो ठीक है आँख की रक्त नलीयाँ सूख रही है। फिर रिपोर्ट में यह सामने आता है कि अब वो जीवन भर देख नहीं पायेगा।…तो क्या ऐसा संभव है नहीं है-
हमारा शरीर परमात्मा की अद्भुत देन है। गर्भ की उत्पत्ति नाभि के पीछे होती है और उसको माता के साथ जुडी हुई नाडी से पोषण मिलता है और इसलिए कहा जाता है की मृत्यु के तीन घंटे तक नाभी गर्म रहती है।
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नाभि एक अद्भुत भाग इसलिए है की गर्भधारण के नौ महीनों अर्थात 270 दिन बाद एक सम्पूर्ण बाल स्वरूप बनता है। नाभि के द्वारा सभी नसों का जुडाव गर्भ के साथ होता है।
नाभि के पीछे की ओर पेचूटी या navel button होता है।जिसमें 72000 से भी अधिक रक्त धमनियां स्थित होती है
नाभि में देशी गाय का शुध्द घी या तेल लगाने से बहुत सारी शारीरिक दुर्बलता का उपाय हो सकता है।
1. आँखों का शुष्क हो जाना, नजर कमजोर हो जाना, चमकदार त्वचा और बालों के लिये उपाय-
सोने से पहले 3 से 7 बूँदें शुध्द देशी गाय का घी और नारियल के तेल नाभी में डालें और नाभी के आसपास डेढ ईंच गोलाई में फैला देवें।
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2. घुटने के दर्द में उपाय
सोने से पहले तीन से सात बूंद अरंडी का तेल नाभी में डालें और उसके आसपास डेढ ईंच में फैला देवें।
3. शरीर में कमपन्न तथा जोड़ोँ में दर्द और शुष्क त्वचा के लिए उपाय :-
रात को सोने से पहले तीन से सात बूंद राई या सरसों कि तेल नाभी में डालें और उसके चारों ओर डेढ ईंच में फैला देवें।
4. मुँह और गाल पर होने वाले पिम्पल के लिए उपाय:-
नीम का तेल तीन से सात बूंद नाभी में उपरोक्त तरीके से डालें।
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नाभी में तेल डालने का कारण- नाभि चिकित्सा pdf
हमारी नाभि को मालूम रहता है कि हमारी कौनसी रक्तवाहिनी सूख रही है,इसलिए वो उसी धमनी में तेल का प्रवाह कर देती है।
जब बालक छोटा होता है और उसका पेट दुखता है तब हम हिंग और पानी या तैल का मिश्रण उसके पेट और नाभि के आसपास लगाते थे और उसका दर्द तुरंत गायब हो जाता था।बस यही काम है तेल का।
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