इस योग को पूर्ण मत्स्येन्द्रासन के रूप में भी जाना जाता है। यह आसन मुद्रा बेहतर स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। इस आसन का नाम संस्कृत शब्द मत्स्य से लिया गया है , जिसका अर्थ है “मछली,” और इंद्र, जिसका अर्थ है “भगवान” या “राजा”। मत्स्येन्द्रासन को अंग्रेजी में मछलियों की मुद्रा का स्वामी भी कहा जा सकता है।
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मत्स्येन्द्रासन क्या है? | What is Matsyendrasana in Hindi ?
इस आसन में घुटने और जंघा पर विशेष रूप से दबाव पड़ता है, अतः इसे मत्स्येन्द्रासन कहते हैं।
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मत्स्येन्द्रासन के लाभ | Matsyendrasana Benefits in Hindi
इस आसन को करने से शरीर की पेशियां और जोड़ ज्यादा लचीले होते हैं तथा शक्ति एवं तेज की प्राप्ति होती है।
यह सम्पूर्ण शरीर को शुद्ध रखता है तथा कुण्डलिनी को जगाने में सहायक बनता है। इससे बड़ी और छोटी आंतें, जिगर, तिल्ली, मेदा, मूत्राशय तथा क्लोम ग्रंथि के सभी विकार दूर होते हैं।
इस आसन से मधुमेह और हर्निया रोग में यह विशेष लाभकार साबित होता है।
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मत्स्येन्द्रासन की विधि | Matsyendrasana Steps in Hindi
दोनों पांवों को फैलाकर फर्श पर बैठ जाएं। घुटने, एड़ियां, पंजे परस्पर मिले रहने चाहिएं। दोनों हाथों को जांघों के ऊपर वाले भाग के समीप पृथ्वी पर रखें (हथेलियां पृथ्वी पर टिकी रहें)। हाथों की अंगुलियां परस्पर मिली हुई तथा बाहर की ओर रहनी चाहिएं।
अब दायें घुटने को मोड़कर पृथ्वी पर रखें तथा उसके तलुवे को बायीं जांघ के मूल अर्थात् सबसे ऊपरी भाग में मजबूती से रखें तथा बायें पांव को घुटने को ऊपर की ओर उठाकर उसके तलुए को दायें घुटने के दायीं ओर पृथ्वी पर रखें।
अब दायें हाथ के बाये घुटने के बायें पार्श्व से घुमाकर बायें पांव का अंगूठा पकड़ें तथा बायें हाथ को पीछे की ओर ले जाते हुए दायें पांव की पिण्डली को पकड़ने का प्रयत्न करें। इसके साथ ही सिर सहित पूरी छाती को बायीं तरफ थोड़ा-सा झुका ले।
फिर उपर्युक्त से विपंरीत अवस्था में आ जाएं; अर्थात् दायें घुटने के स्थान पर बायें घुटने को मोड़कर पृथ्वी पर रखें और बाकी सभी क्रियायें उल्टी दिशा में करें। इस अभ्यास को तीन बार तक दुहरा सकते हैं।
विशेष
आसन में अंगों पर जोर न डालकर सहारा देकर आसन स्थिति में आयें।
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मत्स्येन्द्रासन करने का समय
आसन अवस्था बन जाने के बाद पांच सेकेण्ड तक आसन अवस्था में रहकर आसन से पूर्व की अवस्था में आ जायें। तीन सेकण्ड विश्राम लेकर आसन को तीन बार तक करें।
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