गोरक्षासन का अर्थ | Gorakshasana
इस आसन में महागुरु गोरक्षनाथ (गोरखनाथ) साधना किया करते थे इसलिये इसे “गोरक्षासन’ कहते हैं।
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गोरक्षासन के लाभ | Gorakshasana Benefits
इस आसन के अभ्यास से शुक्र ग्रन्थियों का विशेष व्यायाम होता है।
इस आसन से पुरुषों के शुक्राणुओं की क्षमता बढ़ती है। वीर्य वृद्धि एवं वीर्य के गाढ़ेपन का लाभ मिलता है।
यह आसन स्वप्नदोष और शीघ्रपतन के दोष से मुक्त करता है।
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गोरक्षासन की विधि | Gorakshasana Steps
विधि-1
सर्वप्रथम आप जमीन पर अपने पैरों को फैलाकर बैठ जायें। फिर अपने पैर की एड़ियों को मिलाकर टांगों को इकट्ठा कर जांघों के नीचे (जननेन्द्रिय और गुदा स्थान के बीच) दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में फंसाकर कंधी के आकार की तरह बनाकर अपने दोनों पैरों के अग्रभाग को पकड़ लें।
दोनों हाथों के अंगूठे, पैरों के अंगूठों के ऊपर हों। सांस अन्दर की ओर जाए कमर बिल्कुल सीधी कर लें। कोशिश करें कि आपके पे जमीन से स्पर्श कर जायें। बाजू सीधे कर लें। इस स्थिति में आप जितनी देर हो सके, सांस को रोके रहें, तत्पश्चात् शनै:-शनैः सांस बाहर निकाल दें। शरीर को ढीला कर दें और पैरों को खेल दें।
विधि-2
इसकी दूसरी विधिनुसार सर्वप्रथम आप अपनी एड़ियों पर बैठें, फिर अपने दोनों हाथों को घुटनों पर रख लें तथा हाथों के दबाव से घुटनों को जमीन से लगायें। चेहरा सामने की ओर रहे। कुछ समय इसी स्थिति में रुके रहने के उपरान्त आसन की पूर्व स्थिति में आ जायें और शरीर को ढीला और हाथ पीछे की ओर करके विश्राम करायें।
गोरक्षासन करने का समय
इस आसन को रोजाना एक-दो बार कर सकते हैं।
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