विपरीतकरणी मुद्रासन क्या है? | viparita karani mudra asana in Hindi
इस आसन में धड़ तथा पांवों को ऊपर उठाते हुए समकोण बनाते हैं, अतः इसे विपरीतकरणी-मुद्रासन कहते हैं।
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विपरीतकरणी के लाभ | viparita karani mudra benefits
- इस आसन से स्नायविक दुर्बलता दूर होती है।
- इस आसन से स्त्रियों के बांझपन तथा मासिक धर्म सम्बन्धित विकार दूर होते हैं।
- इसके कारण मस्तिष्क में रक्त प्रवाह होने लगता है।
- इस आसन से सफेद बाल काले होने लगते हैं तथा चेहरे की झुर्रियां दूर होकर नव-यौवन प्राप्त होता है।
- चेहरे पर तथा मस्तक पर चमक आ जाती है।
- इस आसन से कामशक्ति का विकास होता
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विपरीतकरणी मुद्रासन करने की विधि
इस आसन को दरी या कम्बल बिछाकर शर्वासन की स्थिति में एकदम सीधे लेट जाएं। फिर सर्वांगसन की धड़ और पांवों को ऊपर उठाते हुए पृथ्वी से समकोण बनाएं। अब पृथ्वी पर कोहनियां टेककर नितम्बों को हथेलियों का सहारा दें, तदुपरांत पुनः पीठ तथा पैरों को बिल्कूल सीध में रखते हुए शरीर को 45 डिग्री कोण बनाएं। इस स्थिति में ठोड़ी, गले के गड़ढे को मिलाकर ‘जालन्धर बंध” नहीं बनेगी। परन्तु जीभ से तालू के कठोर तथा कोमल संधि का भाग स्पर्श करते हुए ‘जिहा बंध” बनाना चाहिए (देखें बन्ध आयाम) इस तरह विपरीतकरणी-आसन की मुद्रा बन जाती है।
विशेष
यदि कण्ठ से कडुवा-सा रस प्रवाहित होने लगे तो अभ्यास को स्थगित कर देना चांहिए। 4 वर्ष से कम आयु के बालक इस आसन को न करें।
इस आसन को करने के लिए शरीर की कठोर अवस्था आवश्यक है, जिसमें इस आसन द्वारा लचीलापन लाया जाता है। इस आसन से कमर पर विशेष जोर पड़ता है। अतः कमर को धीरे-धीरें उठाकर साधने (सन्तुलन बनाये रखने) का कार्य करें।
विपरीतकरणी मुद्रासन करने का समय
इस आसन के अभ्यास को 30 सेकेण्ड से प्रारम्भ करके धीरे-धीरे एक घण्टे तक किया जा सकता है।
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