सुप्ता वज्रासन (Supta Vajrasana) एक मध्यम स्तर का पड़ा हुआ योग आसन है जो करने वाले को कई लाभ प्रदान करता है। जैसा कि नाम से पता चलता है, यह वज्रासन योग के समूह से संबंधित है । इसके अलावा, यह पैरों की स्थिति को छोड़कर मत्स्यासन जैसा दिखता है ।
सुप्त वज्रासन क्या है? | Supta Vajrasana in Hindi
वज्रासन की अवस्था से थोड़ी भिन्न अवस्था सुप्त वज्रासन की है। इसमें शरीर वज़ के समान कड़ा रखना पड़ता है तथा अवस्था सोने की सी होती है। इस कारण इसे सुप्त वज्रासन कहते हैं।
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सुप्त वज्रासन के रोग, निदान और लाभ | Supta Vajrasana Benefits
- सुप्त वज्रासन करने में मेरूदण्ड, पीठ की पेशियां, पेट की नसों तथा वस्ति प्रदेश का उत्तम व्यायाम होता है।
- यह पीठदर्द को मिटाता है तथा स्त्रियों के बांझपन को दूर करने में सहायक होता है।
- अर्श (बवासीर) के रोगियों को इस आसन के करने से पर्याप्त लाभ पहुंचता है।
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सुप्त वज्रासन की विधि | Supta Vajrasana Steps
भूमि पर आराम से बैठ जाएं। दोनों पांवों को मोड़कर पीछे की और ले जाएं। तलुवे उठे हुए हों। पांव का दायां अंगूठा बायें पांव के तलुवे पर रहे तथा दोनों एड़ियां गुदा द्वार के नीचे रहें। दोनों घुटने परस्पर मिलते रहें। कमर सीधी तनी रहे ।
दोनों हाथों को दोनों घुटनों पर जमा लें। अब आप वज़ासन मुद्रा में आ जायें। फिर धीरे-धीरे पीछे की ओर झुकते हुए, पीठ को फर्श से लगा दें। प्रारम्भ में यदि सन्तुलन स्थिर न रख सकें तो कुहनियों का सहारा लेते हुए धड़ को पीछे की ओर ले जाएं।
सिर को यथासम्भव पीठ को ओर झुकाते हुए पृथ्वी पर टिका देना चाहिए तथा पेट व छाती को यथासम्भव ऊपर की ओर रखंकर कमानी जैसा बना लेना चाहिए।
घुटने जमीन से सटे रहने चाहिएं तथा श्वास गतिमान रखनी चाहिए। इस स्थिति में पांच मिनट तक रहें। फिर धीरे-धीरे उठें तथा कुछ विश्राम करने के उपरान्त पुनः तीन बार इसे दोहरायें।
विशेष
कुछ योगियों के अनुसार इस अभ्यास को भोजन के बाद भी किया जा सकता है, ऐसा करने से बुढ़ापा शीघ्र पास नहीं आता। इसे वज्रासन की पूर्ण स्थिति भी कह सकते हैं।
सुप्त वज्रासन करने का समय
इस आसन में आने के बाद एक से पांच मिनट तक आसन अवस्था में रहा जा सकता है। अच्छा अभ्यास हो जाने पर इसे तीन से पांच बार दोहरायें।
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सुप्त वज्रासन में सावधानियां | Supta Vajrasana Precautions
इस आसन को करने में कुछ सावधानियों का पालन करना चाहिए-
पीठ के निचले हिस्से में दर्द, घुटने की चोट और डीजेनेरेटिव डिस्क वालो को इस योग मुद्रा से बचना चाहिए।
साथ ही, जो लोग सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस और ऑस्टियोआर्थराइटिस से पीड़ित हैं उन्हें भी ये आसन नहीं करना चाहिए।
इसके अलावा, यह मुद्रा गर्भवती लोगों के लिए नहीं है।
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