जानुशिरासन क्या है? | Janushirasana
‘जानु’ का अर्थ घुटना और ‘शिर’ का अर्थ सिर है। अतः इस आसन को “जानुशिरासन” कहते हैं।
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जानुशिरासन के लाभ | Janushirasana Benefits
- इस आसन के निरन्तर अभ्यास से घुटनों, पीठ, कमर, आदि की नसों एवं पेशियों में मजबूती आती है।
- पीठ व कमर में लचीलापन आ जाता है।
- टखनों, पिण्डलियों, घुटनों आदि के विकार दूर होते हैं और वीर्य सम्बन्धी दोष दूर होते है।
- प्लीहा, यकत, आंतों आदि दोषों को दूर करता है। पेट का मोटापा दूर होता है। पेट, कमर, जांघों, बांहों, पीठ आदि में सुडौलता आती है।
- रीढ़ की हड्डी मजबूत व लचीली होती है, रीढ़ की हड्डी के मध्य से गुजरने वाली मूल रक्तनलिका के विकार दूर होते हैं।
- साइटिका दर्द में भी फायदा होता है, शुक्राणुओं में वृद्धि होती है, मधुमेह का रोग दूर होता है।
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जानुशिरासन की विधि | Janushirasana Steps
जमीन पर दोनों टांगों को सामने फैलाकर बैठ जायें। दायीं टांग को फैला रहने दें। इसके पंजे के तलुवे को दायीं जांघ से चिपका लें। दोनों हाथों से दायें पैर के अंगूठे या पंजे को पकड़िये, रैचक करके बाह्य कुम्भक लगायें।
पेट को नाभि पर जोर देते हुए अन्दर को पकड़िये, रेचक करके बाह्य कुम्भक लगायें। पेट को नाभि पर जोर देते हुए अन्दर की ओर पिचकायें।
अब धीरे-धीरे आगे की ओर कमर से मुझे हुए धीरे-धीरे झुकिये। ललाट या नाक से.लगायें। पूरक सांस लेते हुए धीरे-धीरे आसन खोलें। फिर इस आसन को मुद्रा में करें। इस आसन को करते समय ध्यान रीढ़ की हड्डी पर लगाया जाता है।
विशेष
इस आसन में सिर को घुटने से सटाया जाता है। रजस्वला एवं गर्भवती स्त्री को यह आसन करना चाहिये। कमर को मोड़ने का आसन धीरे-धीरे करना चाहिये।
जानुशिरासन करने का समय
इस आसन को सरलतापूर्वक जितनी देर तक कर सकते हैं, करें।
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