भृंगासन क्या है? | What is Bhringasana ?
इस आसन को करते समय साधक के शरीर की आकृति भौरे के समान प्रतीत होती है, क्योंकि भौरे के छः पैर होते हैं। दो पैर, दो घुटने तथा दो हाथ ही उसके छः पैरे होते हैं। यह ‘षट्पद” भी कहलाता है।
भृंगासन के लाभ | Bhringasana Benefits
पेट में गैस, भूख ने लगे, भोजन हजम न होना, कब्ज,मूत्रोत्सर्जन में रुकावंट हों तो यह आसन बहुत लाभ पहुँचता है।
भृंगासन की विधि | Bhringasana Steps
सर्वप्रथम आप जमीन पर आसन बिछाकर अपने घुटनों को मोड़कर पैरों को पीछे की ओर ले जायें। दायीं एड़ी पर बायां नितम्ब तथा बायीं एड़ी पर बायां नितम्ब टिका दें। इसका ध्यान रहे, आपकी एड़ियां परस्पर मिली
हुई हों, पंजों के बल लेट जायें।
अब सांस अन्दर की ओर लेते हुए धीरे-धीरे सामने की तरफ शरीर को झुकायें तथा दोनों कुहनियों को घुटनों (गोड़ों) के मध्य रखते हुए कुहनी से हाथों की हथेलियों तक के हिस्से को जमीन पर पूर्ण रूप से जमा दें। हाथों की उंगलियां परस्पर मिली हुई रहें ।
इस स्थिति मैं जितनी देर आसानी से रहा जा सके, रहें फिर सांस बाहर की ओर निकालते हुए ऊपर उठाकर पूर्व स्थिति में आ जायें, और कुछ क्षण शरीर को विश्राम देकर फिर दोबारा क्रिया दुहराइये।
विशेष
इस आसन में घुटनों को मोड़कर पैरों की एडियों को मिलाकर नितम्बों के नीचे रखकर बैठा जा सकता है।
भृंगासन करने का समय
इस आसन को आप प्रतिदिन एक-दो बार आसानी से कर सकते हैं।