भ्रमणासन क्या है? | Bharmanasana in Hindi
इस आसन को करने से शरीर की स्थिति भ्रमण अर्थात् घूमती हुई होती है। अतः इसे भ्रमणासन कहते हैं।
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भ्रमणासन के लाभ | Bharmanasana Benefits in Hindi
- इस आसन में यकृत, पपीहा तथा गुर्दे की बीमारियां दूर हो जाती हैं।
- इससे रीढ़ तथा आन्तरिक स्नायु लचीले तथा मजबूत होते हैं।
- इससे झुके हुए कंधे, झुकी पीठ तथा बैठक में सुधार होता है।
- यह अजीर्ण, कब्ज तथा दमा रोग में लाभकारी है।
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भ्रमणासन करने की विधि | Bharmanasana Steps
दोनों पांवों को फैलाकर सीधे बैठ जाएं फिर दायें पांव को बायें घुटने पर ले जाएं तथा उनके पंजों को दृढ़तापूर्वक फर्श पर जमा दें। बायां हाथ दायें पांव के पंजे पर रहें, फिर दाईं भुजा को घुमाकर कमर के पीछे ले जाकर यथासम्भव खींचें। इस हाथ की खुली हथेली तथा कलाई दायीं नितम्ब अस्थि पर टिकी रहनी चाहिए।
सिर तथा रीढ़ को सीधा रखें तथा दायें पांव का पूरा पंजा भी फर्श पर टिकाए रखें। अब गहरी सांस लेते समय पहले सिर को फिर कंधों तथा पीठ को भी दाईं ओर घुमाये श्वास छोड़ने पर पता चलेगा कि अभी दायीं ओर को और भी अधिक घूम सकते हैं, घूमते समय सिर को झुकाएं नहीं।तथा ठोड़ी को ऊपर रखना चाहिए।
इस स्थिति में श्वास को साधकर यथासम्भव देर तक ठहरना चाहिए फिर श्वास को छोड़ते हुए तथा घुमाव को खोलते हुए सिर, कंधे तथा पीठ को यथास्थिति में ले आना चाहिए, कुछ देर तक ठहरने के बाद घुमाव पुनः दोहराएं। फिर पांव बदलकर इसी प्रक्रिया को बायीं ओर से दोहराएं।
“यह आसन स्त्री-पुरुष दोनों के लिए सरल एवं उपयोगी हैं। यह आसन ‘मत्स्येन्द्रासन’ से कुछ मिलता-जुलता है। भ्रमणासन करने के बाद `शवासन´ की स्थिति में लेटना चाहिए और गहरी सांस लेना और छोड़ना लाभकारी होता है।
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भ्रमणासन करने का समय
आसन स्थिति में आ जाने के बाद पहले 5 सेकेण्ड तक वृद्धि करते हुए एक मिनट तक ले जाएं। कई सेकेण्ड तक इस आसन में स्थिर रहने के लिए निरन्तर गहरी सांस लेते रहना आवश्यक है। आसन खोलते समय सांस छोड़ देना चाहिए। इस अभ्यास को दो-तीन बार पांव बदलकर दोहराना चाहिए।
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