अश्वगन्धा | Ashwagandha Benefits in Hindi

हरे देश में नाना प्रकार की जड़ी बुटिया ऑर वनस्पतियां उपलब्ध हैं और जड़ी बूटी किसी न किसी हेतु के लिए उपयोगी होती हैं। इस स्तम्भ अंतर्गत जड़ी बूटियों एव वनस्पतियों के गन और उपयोग का विवरण, परिचय सहित लिखा जाता है। इस लेख में औषधीय गुणों से भरपूर ‘अश्वगंधा’ के बारे में विवरण प्रस्तुत है।

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आयुर्वेदिक औषधियों में, वाजीकरण संबंधी योगों में सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला घटक – द्रव्य अश्वगन्धा है और जड़ी बूटियों में सबसे ज्यादा बिकने वाली जड़ी बूटी अश्वगन्धा ही है। शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ा कर, रोगों के आक्रमण से बचाव करने और शरीर में बल बढ़ाने वाले द्रव्य और औषधि को चरक संहिता में ‘बल्य’ कहा हैं। और ‘देशमानी बल्यानि भ्वन्ति’ के अनुसार जिन दस द्रव्यों को “बल्य” माना है उसमे से एक अश्वगन्धा है। जो द्रव्य शरीर को स्वस्थ और बलवान रख कर हृष्ट पुष्ट बनाए उसे सुश्रुत संहिता में ‘बृहण’ कहा है। इस परिभाषा के अनुसार अश्वगन्धा ‘बल्य’ होने के साथ-साथ बृहण भी है। ऐसे अद्भुत ‘अश्वगन्धा” के बारे में उपयोगी विवरण प्रस्तुत है।

भाव प्रकाश निघण्टु में लिखा है-

अश्वगन्धानिलश्लेष्मश्वित्र शोथक्षयापहा ।
बल्या रसायनी तिक्ता कषायोष्णाशुक्रला ॥

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अश्वगन्धा का भाषा भेद से नाम भेद

संस्कृत-अश्वगन्धा ।

हिन्दी-अश्वगन्धा, असगन्ध ।

मराठी – आसगन्ध ।

गुजराती-आसन्ध ।

बंगला-अश्वगन्धा ।

तैलुगु- पिल्‍ली आंगा,

पनेरु तामिल-आम कुलांग ।

कन्नड़-आसान्दु, अश्वगन्धी ।

फ़ारसी -मेहेमत वररी।

इंगलिश-विण्टर चेरी (Winter Cherry )।

लैंटिन- विथानिया सोमनीफेरा (Withania Somnifera)।

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अश्वगन्धा के गुण

असगन्ध (अश्वगन्धा) की जड़ उपयोग में ली जाती है इसलिए इसे जड़ी कहा जाता है। यह हलकी, स्निग्ध, तिक्त, कटु व मधुर रस युक्त, विषाक में मधुर और उष्ण वीर्य है। यह अत्यन्त शुक्र वर्द्धक, बलपुष्टिदायक,रसायन, कड़वी, कसैली, गर्म तथा वात-कफ का शमन करने वाली, शोथ, क्षय और श्वेतकुष्ट का नाश करने वाली और शरीर को हृष्ट-पुष्ट व सुडौल बनाने वाली जड़ी है।

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अश्वगन्धा के रासायनिक संघटन

अश्वगन्धा की जड़ से Cuseohygrine anahygrine, tropine, anaferine आदि 13 क्षाराभ निकाले गये हैं। इसके अतिरिक्त अश्वगन्धा की जड़ में ग्लाइकोसाइड, विटानिआल, अम्ल, स्टार्च,शर्करा व एमिनो एसिड आदि तत्त्व पाये जाते हैं।

मात्रा और सेवन विधि

अश्वगन्धा का चूर्ण आधे से एक चम्मच मात्रा में मीठे कुनकुने गर्म दूध के साथ, सुबह खाली पेट और रात को सोते समय, भोजन के दो ढाई घण्टे बाद लेना चाहिए । इसका काढ़ा बना कर लेना हो तो 4-4चम्मच सुबह शाम लेना चाहिए।

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अश्वगंधा का परिचय

इसका झाड़ीदार पौधा दो ढाई हाथ ऊंचा होता है इसकी जड़ उपयोग में ली जाती है। इसकी कच्ची जड़ से अश्व (घोड़ा) जैसी गन्ध आती है इसलिए-इसे अश्वगन्धा’ कहते हैं और लगातार 3-4 मास तक नियमित रूप से सुबह शाम इसका सेवन करने पर शरीर में घोड़े जैसी ताक़त आ जाती है इसलिए इसका “अश्वगन्धा’ नाम सार्थक ही है।

यह जंड़ी देश के अनेक भागों में पैदा होती है। विशेषकर मध्य प्रदेश के मन्दसौर जिले में सबसे अधिक, इतनी अधिक मात्रा में पैदा होती है कि देश की सर्वाधिक मांग की पूर्ति यहीं से होती है। इसकी जड़ देश भर में जड़ी बूटी की दुकान पर मिलती है। सूखी जड़ से घोड़े जैसी गन्ध नहीं आती फिर भी इसकी गुणवत्ता में कोई कमी नहीं आती।

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अश्वगन्धा के उपयोग- Ashwagandha Benefits in Hindi

असगन्ध की यह विशेषता है कि यह बच्चे, जवान, बूढ़े, विवाहित या अविवाहित, स्त्री-पुरुष सभी के लिए उपयोगी और लाभ करनें वाली होती है । घरेलू चिकित्सा में उपयोगी असगन्ध की कुछ गुणकारी सिद्ध हुई उपयोग-विधियां प्रस्तुत हैं।

धातु पुष्टि के लिए

सुबह खाली पेट और रात को सोते समय, जब भोजन किये दो ढाई घण्टे हो चुके हों, आधा या एक चम्मच घी और डेढ़ यां दो चम्मच। शहद के साथ एक चम्मच असगन्ध चूर्ण मिला कर पेस्ट बना लें। इसे खा कर एक गिलास मीठा ठण्डा किया हुआ दूध पी लें। कम से कम 60 दिन सुबह शाम यह प्रयोग करने से धातु पुष्टि, धातु वृद्धि और शक्ति वृद्धि होती है, स्नायविक दौर्बल्य दूर हो जाता है।

स्तम्भनशक्ति के लिए

असगन्ध और विधारा- दोनों का बारीक महीन पिसा हुआ चूर्ण, बराबर वज़न में ले कर मिला लें और छन्नी से तीन बार छान कर बर्नी में भर लें । इसे 1 -1 चम्मच सुबह शाम मीठे दूध के साथ 60 दिन लें और खटाई व तेज़ मिर्च मसालेदार व्यंजनों का सेवन न करें, क़ब्ज़ न होने दें। स्तम्भन शक्ति बढ़ाने वाला यह उत्तम और निरापद नुस्खा है।

रसायन प्रयोग के लिए

आयुर्वेद ने जरा यानी बुढ़ापा और व्याधि को दूर रखने वाले पदार्थ को रसायन कहा है। एक चम्मच असंगन्ध चूर्ण, गिलोय सत्त्व एक ग्राम
आधा चम्मच शुद्ध घी और डेढ़ चम्मच शहद- सबको मिला कर पेस्ट बना कर, सुबह खाली पेट और रात को सोते समय खा कर ऊपर से एक कप ठण्डा किया हुआ दूध पी लें। यह नुस्खा रसायन गुण युक्त है। इस नुस्खे का पूरे शीतकाल में सेवन करने से शारीरिक निर्बलता दूर होती है और शरीर सुडौल व शक्तिशाली बनता है।

शिशुओं के लिए

किसी रोग के कारण या यूं ही कोई शिशु दुबला पतला व कमज़ोर शरीर का हो तो उसके शरीर को शक्तिशालीऔर हृष्ट पुष्ट बनाने में असगन्ध का प्रयोग बहुत गुणकारी सिद्ध होता है। असगन्ध का महीन पिसा चूर्ण -2 ग्राम एक कप।दूध में डाल कर उबालें फिर इसमें 8-0 बूंद शुद्ध घी डाल कर उतार लें। ठण्डा करके शिशु को चम्मच से पिलाएं। यह मात्रा पांच वर्ष से कम आयु के शिशु के लिए हैं। 5-6 वर्ष से। 10-11 वर्ष तक की आयु वाले बच्चे को मात्रा दुगुनी करके यानी आधा चम्मच (3-4 ग्राम) असगन्ध चूर्ण और आधा चम्मच घी एक गिलास दूध दें। किशोर और नवयुवा उम्र के बच्चे को उसकी पाचन शक्ति के अनुकूल मात्रा में दें। 0-4 वर्ष की आयु के बाद अश्वयन्धादि घृत का सेकन कराना बहुत लाभग्रद सिद्ध होता है।

बालकों के लिए

जो बच्चे ज्वर आदि रोगों से पीड़ित होने के कारण शरीर से दुबले और कमज़ोर हो जाते हैं उनके लिए एक बहुत ही गुणकारी और पौष्टिक नुस्खा प्रस्तुत है- एक कप दूध में आधे से एक चम्मच (उम्र और शारीरिक स्थिति के अनुसार) असगन्ध चूर्ण डाल कर उबालें। फिर आधा चम्मच शुद्ध घी डाल कर उतार लें। इसे गुनगुना गर्म सुबह खाली पेट बच्चे को पिलाने से बच्चे का शरीर सबल और सुडौल होता है । किशोर या नवयुवा आयु के बच्चे को अश्वगन्धा घृत सुबह शाम आधा-आधा चम्मच दूध के साथ देना चाहिए। यह बच्चे के शरीर को सबल और सुडौल बनाने वाला उत्तम जुस्खा है।

यौन शक्ति के लिए

असगन्ध, विधारा, तालमखाना, मुलहठी, सफ़ेद मूसली और मिश्री- सबका कुटा पिसा महीन चूर्ण 100-100 ग्राम मिला कर तीन बार छन्नी से छान कर शीशी में भर लें। इसे एयरटाइट ढक्कन लगा कर रखें। सुबह शाम एक चम्मच चूर्ण घी या शहद में मिला कर चाट लें। यदि घी मिलाया हो तो गुनगुना गर्म दूध और शहद मिलाया हो ठण्डा दूध पी लें। योन शक्ति बढ़ाने और शीघ्र पतन की व्याधि दूर करने के लिए यह प्रयोग उत्तम है।

शुक्रक्षय और शुक्र स्त्राव

असगन्ध चूर्ण व पीसी मिश्री – चम्मच और पीपल का चूर्ण 1 ग्राम- थोड़े से घी में मिला कर चाट लें और ऊपर से कुनकुना गर्म मीठा दूध सुबह शाम पीने से स्वप्नदोष, धातु स्राव और धातु क्षीणता जैसे विकार दुर होते हैं और धातु पुष्ट होती है

स्तनों में दुब्च वृद्धि

असगन्ध, शतावर,विदारीकन्द और शुललहठी- सबका बारीक पिसा छना चूर्ण समान मात्रा में लेकर (जैसे 100-100 ग्राम) मिला कर तीन बार छान कर बर्नी में भर लें। सुबह शाम – चम्मच चूर्ण गुनगुना गर्म मीठे दूध के साथ पीने से स्तनों में दूध की मात्रा बढ़ जाती है।

गर्भवती के लिए

सुबह एक कप पानी में 0 ग्राम असगन्ध चूर्ण डाल कर उबालें । जब पानी पाव कप (चौथाई भाग) बचे तब उतार कर छान लें और एक चम्मच पिसी मिश्री डाल कर गुनगुना गर्म पी लें। नवमास चिकित्सा के साथ गर्भवती यह नुस्खा भी सेवन करती रहे तो गर्भवती और गर्भस्थ शिशु- दोनों का शरीर बलिष्ठ और पुष्ट होता है। गर्भकाल के पूरे महीनों में इस नुस्खे का सेवन किया जा सकता है ।

प्रजनन शक्ति के लिए

डिम्ब की निर्बलता के कारण स्त्री गर्भ धारण नहीं कर पाती ।ऐसी महिला, मासिक ऋतु स्त्राव शुरू होने वाले दिन से तीन दिन बाद यानी चौथे दिन से सात दिन तक इस नुस्खे का सेवन करे-असगन्ध चूर्ण दस ग्राम लेकर ज़रा से घी में मिला लें और मन्दी आंच पर अच्छी तरह सेक कर एक गिलास उबलते दूध में डाल कर 5-20 मिनट तक उबाल कर उतार लें। इसमें पिसी मिश्री एक चम्मच डाल कर सुबह खाली पेट पीना चाहिए। लाभ न होने तक प्रति मास इसी तरह 7 बिन तक सेवन करते रहना चाहिए ।

स्वेत प्रदर

असगन्ध चूर्ण और पिसी मिश्री 4- चम्मच मिला कर सुबह शाम पीने से श्वेत प्रदर रोग दूर होता है।

श्वास रोग पर

वृद्धावस्था में कफ प्रधान क्षुद्रश्वास का कष्ट होने पर असगन्ध का क्षार आधा ग्राम मात्रा में, थोड़े से शहद में मिला कर सुबह शाम चाटने से कफ निकल जाता है जिससे श्वास कष्ट दूर हो जाता है और शारीरिक निर्बलता दूर होती है। असगन्ध का क्षार पंसारियों के यहां मिलता है। यदि न मिले तो इसके स्थान पर एक चम्पच असगन्ध चूर्ण का उपयोग करें।

वात प्रकोप के लिए

अश्वगन्धा घृत4- चम्मच सुबह शाम दूध के साथ लेने या असगन्ध व शतावर का चूर्ण 4- चम्मच घी में मिला कर सुबह शाम चाटने से वात प्रकोप शांत होता है।

अनिद्रा के लिए

वृद्धावस्था या शारीरिक निर्बलता के कारण थोड़ा अधिक श्रम करने पर हाथ पैर की मांसपेशियों में खिंचाव और दर्द होता है जिससे नींद उड़ जाती है। असगन्ध चूर्ण एक चम्मच घी शक्कर के साथ रोज रात को सेवन करने से नींद आने लगती है। इसमें आधा ग्राम (चार रक्ती) पीपलामूल का चूर्ण मिला कर सेवन करने से वात प्रकोप का शमन होता है और नींद आने में विशेष लाभ होता है। अनिद्रा की शिकायत दूर करने के लिए यह निरापद उपाय है ।

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आधा सीसी के लिए

असगन्ध चूर्ण और पिसी मिश्री – चम्मच, सुबह शाम, दूध के साथ लें, असगन्ध को 2 घण्टे तक पानी में डाल कर रखें फिर पत्थर पर पानी के साथ घिसे। इसे सोने से पहले कपांल पर लेप करने से आधा सीसी का वर्द दूर हो जाता है।

वात व्याधि के लिए

वात प्रकोप होने पर शरीर में वातजन्य व्याधियां जैसे आम वात,सन्धिवात (गठिया), जोड़ों का दर्द, सिर दर्द आदि उत्पन्न होती हैं। पिछली रात और पिछली आयु (वृद्धावस्था) में वात कुपित रहता ही है इसलिए पहले के ज़माने में ये व्याधियां प्रायः बुढ़ापा शुरू होने पर ही होती थीं पर ग़लत ढंग से आहार-विहार और अनियमित दिनचर्या के कारण आजकल युवा आयु में ही स्त्री -पुरुष इन व्याधियों से पीड़ित होने लगे हैं।

अश्वगन्धादि घृत सुबह खाली पेट,एक चम्मच कुनकुने गर्म मीठे दूध के साथ लें और शाम का भोजन करने के ढाई तीन घण्टे बाद सोने से पहले शौच कार्य करने के बाद भी यह घृत सेवन करें। बात प्रकोप जन्य सभी व्याधियां नष्ट हो जाएँगी। परीक्षित है।

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