अर्द्ध उत्तानपादासन क्या है? | What is Ardha Uttanpadasana
जो लोग आरम्भ से उत्तानपादासन करने में असुविधा महसूस करें, उन्हें अर्द्ध उत्तानपादासन की सलाह दी जाती है। इसमें दोनों पैरों को एक साथ ऊंचा उठाने की बजाय बारी-बारी से एक-एक पैर को ऊंचा उठाया जाता है। इसलिए इसको नाम अर्द्ध-उत्तानपादासन दिया गया है।
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अर्द्ध उत्तानपादासन के लाभ | Ardha Uttanpadasana Benefits
- इस आसन से मेरूदण्ड (रीढ़ की हड्डी) सशक्त होती है आन्तरिक कोशिकाएं पुष्ट होती है। यह सम्पूर्ण स्नायुतंत्र को क्रियाशील बनाकर पेट तथा उसके समीपस्थ भाग को संतुलित करता एवं भीतर की अनेक गड़बड़ियों को मिटाता है।
- इससे अपच, कोष्ठबद्धता, स्नायु विकार, पीठ का दर्द एवं पीठ की अन्य गडबडीया दूर होती हैं तथा आमाशय की जलन मिटती है
- खाना खाने के बाद ख़ट्टी-मीठी डकारें आना, वमन होना, भोजन का हजम न होना, पेट में गैस बनाना आदि रोग दूर होते है।
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अर्द्ध उत्तानपादासन की विधि | Ardha Uttanpadasana Steps
इस आसन में रीढ़ और कमर में दर्द से बचने के लिए उत्तानपादासन करने से असुविधा होने पर केवल एक पैर से बारी बारी से आसन करे।
फर्श पर पीठ के बल लेटकर, हाथों को सामने फैलाकर सटाकर रखें (उत्तानपादासन की तरह) बायां पांव उठाये, फिर दूसरी बार दायां पांव उठायें।
इस प्रकार प्रत्येक पांव से अभ्यास करे। इससे मेरुदंड पर पड़ने वाला जोर घट जाएगा तथा कष्ट का अनुभव नहीं होगा। प्रथम दिन अभ्यास को कम करें। अतः अभ्यासों को केवल तीन-चार बार दोहराएं ।
तदुपरांत अगले दिनों में एक-दो बार वृद्धि करें तथा अंत में दस बार दोहराएं।
अर्द्ध उत्तानपादासन में सफलता मिल जाने पर दोनों पांवों को एक साथ ऊपर उठाते हुए पूर्ण उत्तानपादासन का अभ्यास भी करना चाहिए।
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विशेष
इस आसन से मेरूदण्ड पर जोर पड़ता है। अतः मेरूदण्ड में किसी प्रकार की पीड़ा अधवा आधात आदि का कष्ट हो तो उत्तानपादासन नहीं करना चाहिए, ऐसी स्थति में यदि कर सकते हो तो अर्द्ध-उत्तानपादासन कर सकते हैं।
अर्द्ध उत्तानपादासन करने का समय
इस आसन में एक-एक पैर को क्रम से उठाये। चार-पांच बार से बढ़ाकर दस-दस बार तक अभ्यास करें।
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